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शब्द गुण / काव्य गुण किसे कहते है? प्रकार

 शब्द गुण / काव्य गुण किसे कहते है? प्रकार Shavd gun kise kahate hain

हेलो दोस्तो आज में आपको काव्य गुण या गुण की परिभाषा बताने वाला हूं। यह कई बार कॉम्पिटिशन एग्जाम में भी पूछा जाता है। और आपको यह पता नहीं होता इसलिए हम आपको शब्द गुण की परिभाषा और इनके प्रकार या भेद को भी परिभाषित करके बताने वाला हूं।।


शब्द गुण / काव्य गुण किसे कहते है? प्रकार
शब्द गुण / काव्य गुण किसे कहते है? प्रकार



शब्द गुण किसे कहते है?

काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म अथवा तत्व को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं । 

यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है , जैसे फूल में सुगन्धि।


काव्य गुण या शब्द गुण के प्रकार

1] माधुर्य गुण

2] ओज गुण

3] प्रसाद गुण


इन गुणों की परिभाषा


1] माधुर्य गुण किसे कहते हैं?

किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है , वहाँ माधुर्य गुण होता है । यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है । माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, .... आदि । इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता । 


माधुर्य गुण के उदाहरण :–

मैया मोरी! मैं नहिं माखन खायो।  

    ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥


कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।

   कहत लखन सन राम हृदय गुनि।।


बीती विभावरी जाग री।

   अंबर-पनघट में डुबो रही

   तारा-घट ऊषा नागरी।


बसों मोरे नैनन में नंदलाल 

  मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल ।


2] ओज गुण किसे कहते हैं?

जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं । इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है । जैसे - ट, ठ, ड, ढ,ण एवं र के संयोग से बने शब्द , सामासिक शब्द आदि । यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स और भयानक रस में पाया जाता है । 


ओज गुण के उदाहरण:–

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!  

   सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

   तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं


हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

   स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती


एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,

   कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट।


बुंदेले हर बोलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी । 

   खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ।

 

             • महादेवी वर्मा की रचना


3] प्रसाद गुण किसे कहते हैं?

प्रसाद का अर्थ है - निर्मलता , प्रसन्नता है । जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं । 

इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है । यह सभी रसों में पाया जा सकता है । 


प्रसाद गुण के उदाहरण:– 

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥

   प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥

   प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥


वह आता, दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।

   पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,

   चल रहा लकुटिया टेक,

   मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को,

   मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाया,दो टूक....


जसुमति मन अभिलास करै

   कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।

   कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।


जीवन भर आतप सह वसुधा पर छ्या करता है । 

   तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ।


शब्द गुण की परिभाषा हमने इस लेख में जानी है, और शब्द गुण के प्रकार भी जाने है।


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